डॉ . जॉन मेडिना एक मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट , प्रोफेसर हैं . वो Talaris Research Institute के founding डायरेक्टर हैं जिन्होंने बच्चों के cognitive development पर ध्यान फोकस किया है|
मेडिना एक बेहतरीन टीचर रहे हैं जिन्हें कई अवार्ड्स से नवाज़ा गया है . वो Seattle Pacific University में ब्रेन सेंटर के डायरेक्टर भी हैं . उन्होंने साइकोलॉजी के बारे में 10 से ज़्यादा किताबें लिखीं हैं|
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क्या आपने कभी सोचा है कि आपका ब्रेन यानी कि दिमाग कितना पावरफुल है ? ये शब्दों और नंबर्स को समझ सकता है . जब आप डरे या घबराए हुए होते हैं तब भी ये आपको एक जगह से दूसरी जगह जाने में मदद करता है|
आपका ब्रेन सिर्फ पावरफुल ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ भी है . क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप कुछ पढ़ते हैं तो आप उसे कैसे समझ पाते हैं ? या कितनी तेज़ी से किसी भीड़ में भी आप अपने दोस्त या जाना पहचाना चेहरा पहचान लेते हैं ?
ये कमाल आपके ब्रेन और उसके अंदर लाखों नयूरोंस का है . ये कितने आश्चर्य की बात है कि एक छोटी सी जगह में आप अनगिनत इनफार्मेशन स्टोर कर सकते हैं . तो हम अपने ब्रेन को बेहतर बनाने के लिए आखिर क्या कर सकते हैं|
इस बुक में आप सीखेंगे कि ब्रेन कैसे काम करता है और आप इसे हमेशा अच्छी कंडीशन में कैसे बनाए रख सकते हैं . हमारा ब्रेन बहुत ही दिलचस्प और हैरान कर देने वाली मशीन है . इस बुक के ज़रिए आप इसके बारे में बहुत कुछ जानेंगे क्योंकि यकीन मानिए आपका ब्रेन आपको बहुत अच्छे से जानता है .
हमारे जो पूर्वज थे , एक तरह से आप उन्हें बंजारा कह सकते हैं क्योंकि वो एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे . वो अलग – अलग जगह जाने के लिए मजबूर थे क्योंकि एक जगह पर लंबे समय तक रहना संभव नहीं था . उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था जैसे उनके पास खाने की या लकड़ी की कमी जाती थी , जंगली जानवर हमला कर देते थे या मौसम हमेशा बदलता रहता था|
ऐसी कंडीशन का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहने से ब्रेन को तेज़ी से डेवलप होने में मदद मिली . लेकिन अगर आज की बात करें तो हमारे पूर्वजों की तुलना में हमारी लाइफस्टाइल और रहन सहन बहुत अलग है . आज हम अपनी सीट से हिले बिना कई घंटों का सफ़र तय कर लेते हैं|
कई तरह की मशीन ने हमारा काम आसान बना दिया है . हाँ , हमारा बुढ़ापा कैसा होगा हमारी लाइफस्टाइल का इस पर गहरा असर होता अगर आप एक सुस्त जीवन जीते हैं यानी इनएक्टिव हैं और आपने अपनी जिंदगी का ज़्यादातर समय सोफ़े पर लेटे हुए बिताया है तो इसमें कोई शक नहीं कि आप बढ़ती उम्र के साथ ढलने लगेंगे|
लेकिन अगर आपने एक एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाया है तो आप 75 के बाद भी चुस्त और फुर्तीले बने रहेंगे . एक्सरसाइज करने के बहुत फ़ायदे होते हैं . ये हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी बीमारियों के रिस्क को कम कर देता है . ये आपको फिजिकली और मेंटली परफेक्ट शेप banye rakhता है|
कई स्टडी ने ये साबित किया है कि जो लोग एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाते हैं वो मेमोरी , लॉजिक , प्रॉब्लम सोल्व करने की एबिलिटी और बातों को समझने की पॉवर में सुस्त लोगों की तुलना में काफ़ी आगे होते अगर आप भी आलसी और सुस्त हैं तो उदास ना हों क्योंकि रिसर्च करने वालों ने गौर किया तो पाया कि एक्सरसाइज प्रोग्राम को फॉलो करने के बाद इनएक्टिव लोगों की मेंटल एबिलिटी में काफ़ी इम्प्रूवमेंट होने लगा था . चार महीनों में उन्होंने बहुत प्रोग्रेस दिखाई थी . एक्सरसाइज बुढ़ापे में होने वाली बीमारियों के रिस्क को भी कम करता है|
ये आपके मूड को अच्छा बनाए रखता है क्योंकि फिजिकल एक्सरसाइज आपके नर्वस सिस्टम में serotonin , dopamine और norepinephrine को रिलीज़ करता है . जैक ललेन इस बात का परफेक्ट एग्ज़ाम्पल है कि एक्सरसाइज ब्रेन की पॉवर को कैसे बूस्ट करता है . 70 साल की उम्र में उन्होंने कैलिफ़ोर्निया के लॉन्ग बीच हार्बर से queens वे ब्रिज तक 70 बोट जिसमें एक एक आदमी सवार था , उसे खींचकर सबको चकित कर दिया था |
जैक के पीछे 70 बोट बंधी थी और उन्होंने 1.5 मील की दूरी तय की . स्ट्रोंग बॉडी के अलावा , उस उम्र में भी , जैक मेंटली फ़िट थे . उनका माइंड और बॉडी एक 20 साल के नौजवान जैसा था . अब आइए जिम और फ्रैंक को एग्ज़ाम्पल के रूप लेते हैं जिन्होंने एक्टिव और इनएक्टिव लाइफस्टाइल को अपनाया था . जिम वृधाश्रम में रहते थे . वो ज़्यादा चलते फ़िरते नहीं थे बस टीवी के सामने बैठे रहते थे . वो काफ़ी दुखी थे और अक्सर बिना किसी कारण से रोने लगते . दूसरी ओर , फ्रैंक फिजिकली और मेंटली एक्टिव थे . वो हमेशा किसी ना किसी काम में बिजी रहते .
असल में फ्रैंक एक आर्किटेक्ट थे जिन्होंने 90 साल की उम्र में एक म्यूजियम बनाने का काम पूरा किया था . फिजिकली healthy होने के साथ – साथ वो अपनी जिंदगी से ख़ुश भी थे . आपको क्या लगता है , इस फ़र्क का कारण क्या था ? जब आप ख़ुद को एक्टिव बनाए रखते हैं तो आप पॉजिटिव विचारों और एनर्जी से भरे होते हैं . लेकिन जहां आपने ख़ाली बैठना शुरू किया तो आपके माइंड में शैतानी ख़याल घर करने लगते हैं और आपको नेगेटिव विचारों से भर देते हैं जो आपके दुःख और तकलीफ़ का कारण बनता है जैसा कि जिम के साथ हुआ था . कई लोग हैं जो जिम की तरह सुस्त और इनएक्टिव हैं लेकिन उनके लिए अब भी उम्मीद बची है . हर रोज़ सिर्फ़ 20 मिनट का एक्सरसाइज भी आपके हेल्थ और मूड में पॉजिटिव बदलाव लाने की ताकत रखता है .
हमारे पूर्वजों ने कठोर वातावरण से बचने के लिए सिर्फ अपनी बॉडी का ही नहीं बल्कि अपने दिमाग का भी बहुत इस्तेमाल किया . वो सिंबॉलिक रीजनिंग का इस्तेमाल करते थे . सिंबॉलिक रीजनिंग वो कला है जो हमें जानवरों से अलग बनाती है . ये उन चीज़ों को देखने की एबिलिटी है जो सच में मौजूद नहीं हैं . इमेजिन कीजिए कि आप अपने हाथ पर एक सीधी और लंबी लाइन ड्रा करते हैं . क्योंकि हमारे पास सिंबॉलिक रीजनिंग है , इसलिए हम समझ जाते हैं कि इसका मतलब या तो अल्फाबेट ” I ” है या नंबर 1 . सिंबॉलिक रीजनिंग ने हमारे पूर्वजों को एक दूसरे के साथ बातचीत करने में और अगर आगे कोई ख़तरा है तो हमें सावधान करने में मदद की है .
ये तो शुक्र है कि समय के साथ इंसान में कई बदलाव और डेवलपमेंट हुआ और कुछ ऐसे सिंबल बन गए जिन्हें दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी समझ सकता है जैसे रेड सिग्नल का मतलब है स्टॉप , thumps up का मतलब है ओके वगैरह . हम कई फील्ड में जैसे लैंग्वेज , आर्ट , पोएट्री में भी सिंबॉलिक रीजनिंग को यूज़ करते हैं . हमने अपने कल्चर को इस यूनिक एबिलिटी में ढाला है . हमारे पवित्र ग्रंथों , पौराणिक कथाओं और दिजागों के बारे में सोचिए . इंसानों ने सिंबॉलिक रीजनिंग की मदद से धर्म और corporation को बनाया . जानवर ये सब कुछ नहीं कर सकते थे।
नेचुरल सिलेक्शन ने हमारे कमज़ोर पूर्वजों को हटा दिया और ज़्यादा मज़बूत लोगों का genes अगली पीढ़ी में चला गया . फ़िर भी , हिस्ट्री ने इसे अनदेखा कर दिया . जब ईस्ट अफ्रीका में हमारे पूर्वजों ने एक छोटी सी आबादी से धरती पर जिंदगी की शुरुआत की थी तो आज आबादी 7 अरब तक कैसे पहुँच गई?
तो इसका जवाब है बदलाव . इससे लड़ने के बजाय हमने बदलाव के साथ ढलना और उसे अपनाना सीखा . Smithsonian Museum # Human Origins के डायरेक्टर रिचर्ड पॉट्स ( Richard Potts ) इस थ्योरी को Variability Selection Theory कहते हैं . ये थ्योरी बताता है कि हमारे ब्रेन में 2 पावरफुल विशेषताएं हैं . पहला , हम जब गलतियां करते हैं तब हम सचेत हो जाते हैं और दूसरा हमारा ब्रेन हमें उनसे सीखने की परमिशन देता है .
इस एबिलिटी ने हमारे पूर्वजों को बिना किसी मदद के तेज़ी से बदलती हुई कंडीशन को झेलते हुए आगे बढ़ना सिखाया . उन्हें बताने या सिखाने वाला कोई नहीं था . उन्होंने ख़ुद सब कुछ झेला और आगे बढ़ते रहे . एक और चीज़ जो हमें जानवरों से अलग बनाती है वो है bipedalism . ये वो एबिलिटी है जो हमें दो पैरों पर चलने और हाथों को दूसरे काम के लिए इस्तेमाल करने की क्षमता देती है . लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर जो इंसानों को औरों से अलग करता है वो है हमारे ब्रेन का prefrontal cortex . Prefrontal cortex ख़ास तौर पर प्रॉब्लम को सॉल्व करने , ध्यान फोकस करने और नेचुरल सेंस या इन्टुईशन को कंट्रोल करने के लिए ज़िम्मेदार होता है .
आइए एक कहानी से इसे समझते हैं . ये कहानी है 25 साल के फ़ीनीस गेज की है. वो रेलरोड कंस्ट्रक्शन टीम का हेड था . गेज का परिवार और उसके साथी उसे मज़ाकिया , स्मार्ट और मेहनती लड़के के रूप में जानते हैं . एक दिन , काम के दौरान गेज एक भयानक दुर्घटना का शिकार हो गया . वो चट्टानों को हटाने के लिए ब्लास्ट की तैयारी कर रहा था . लेकिन धमाका समय से पहले हो गया . 3 फुट लंबा स्टील का rod सीधे गेज के ब्रेन के सेंटर में घुस गया . इसने उसके prefrontal cortex को पूरी तरह डैमेज कर दिया था . ये किसी चमत्कार से कम नहीं था कि गेज की जान बच गई थी . लेकिन इस घटना ने उसकी जिंदगी बदल कर रख दी . हंसता मुस्कुराता गेज अब चिडचिडा , गुस्सैल और झगड़ालू हो गया था . कुछ सालों बाद मिर्गी के दौरों की वजह से उसकी मृत्यु हो गई ।
हमें चीज़ों को सीखने के लिए ध्यान यानी अटेंशन देने की ज़रुरत होती है . आप जितना ज़्यादा ध्यान किसी चीज़ पर देते हैं , उतना ही ज़्यादा आप उसे याद रख पाएँगे . अब हर क्लासरूम और ऑफिस में एक सवाल ज़रूर पूछा जाता है कि किसी का अटेंशन कैसे बनाकर रखा जाए ? बहुत सारी चीजें हमारा ध्यान भटकाती हैं . मान लीजिए कि आप कुछ पढ़ रहे हैं और तभी आपका कुत्ता आपके साथ खेलने लगता है या आस पास से कई गाड़ियां गुज़रती हैं वगैरह . जहां भी हमारा ध्यान होता है मेमोरी वहाँ अपना असर डालती है . ” Guns , Germs , and Steel ” बुक के ऑथर जेरेड डायमंड ने न्यू गिनी के जंगल में अपनी ट्रिप और वहाँ के रहने वाले देसी न्यू गिनी के लोगों के साथ बिताए हुए समय का एक्सपीरियंस शेयर किया .
वहाँ के लोग वातावरण में बदलाव को नोटिस करने में , किसी निशान का पीछा करने में और घर वापस लौटने के तरीके खोजने में माहिर थे . जेरेड जो शहर में रहते थे , इनमें से कुछ भी नहीं कर सकते थे . ये एक एग्ज़ाम्पल है कि कैसे हम उन चीज़ों पर ध्यान देते हैं जो हमारे कल्चर से जुड़ा हुआ होता है और जिस कल्चर में हम पले बढ़े होते हैं . ज़रा सोचिए कि एक न्यू गिनी का बच्चा जिसका जन्म और पालन पोषण न्यू यॉर्क में हुआ है|
क्या आपको लगता है कि वो जिंदा रहने के उन टेक्निक्स को कभी जान पाएगा जिसके बारे में उसके पूर्वज जानते थे ? इंटरेस्ट का भी अटेंशन के साथ एक कनेक्शन होता है . मार्केटिंग प्रोफेशनल्स इस प्रिन्सिप्ल का फ़ायदा उठाते हैं . अपने advertisement में वो हमेशा कुछ नया , यूनिक और हटके कांसेप्ट लेकर आते हैं . अब Sauza tequila के प्रिंट ad को ही ले लीजिए , 20 की उम्र के लोग जो पार्टी कर रहे हैं उसके बजाय उन्होंने एक दाढ़ी वाले बूढ़े की पिक्चर लगाईं थी जिसने मैले कुचैले कपड़े पहन रखे थे और उसके चेहरे पर बड़ी शरारती हंसी छायी हुई थी . बूढ़े के मुँह में बस एक दांत था . उसके ऊपर लिखा था “
इस आदमी के दांत में बस एक छेद है ” . नीचे लिखा था ” लाइफ हार्ड है लेकिन आपका टकीला नहीं होना चाहिए ” . इस ad ने लोगों का ध्यान अपनी ओर attract किया क्योंकि इसकी पिक्चर इतनी यूनिक और हटकर थी और इसमें लिखे लाइन में humour था . जानकारी या अवेयरनेस भी अटेंशन पर असर डालती है . आइए एक एग्जाम्पल से समझते हैं . जाने माने न्यूरोलॉजिस्ट और ऑथर डॉ . ऑलिवर सैक्स ( Dr. Oliver Sacks ) के बुक ” The Man Who Mistook His Wife for a Hat ” में डॉ . ऑलिवर के पास एक पेशेंट आई जिन्हें ख़तरनाक स्ट्रोक हुआ था .
उनके ब्रेन का पिछला हिस्सा बुरी तरह डैमेज हो गया था . इसका असर ये हुआ कि वो अपनी बॉडी के लेफ्ट हिस्से में ना कुछ महसूस कर सकती थीं और ना लेफ्ट आँख से कुछ देख सकती थी . उनके लेफ्ट साइड में क्या हो रहा है उन्हें कुछ पता नहीं चलता था इसलिए वो उस पर ध्यान नहीं दे पाती थीं . इस हादसे के बाद जब भी वो मेकअप यूज़ करती तो सिर्फ चेहरे के राईट साइड में करती , जब वो खाती तो अपनी प्लेट का राईट साइड का हिस्सा खाती . वो अक्सर नर्स से शिकायत भी करती कि उन्हें खाने में कभी कुछ मीठा क्यों नहीं दिया जाता था . नर्स उन्हें कहती कि अगर वो अपने लेफ्ट साइड में देखेंगी तो उन्हें मिठाई ज़रूर दिखाई देगी . मिठाई तो हमेशा वहाँ रखी होती थी उन्हें बस इस बारे में पता नहीं चलता था .
आपकी मेमोरी आपको जिंदा रहने में मदद करती अगर आपका ब्रेन इस बात को याद नहीं रखेगा कि आपको खाने की किस चीज़ से एलर्जी है तो आप वही चीज़ बार – बार खाकर बीमार हो जाएंगे . एक्सपीरियंस आपके ब्रेन को शेप देते हैं और आपको लंबे समय तक जीने में मदद करते हैं . लेकिन असल में हमारी मेमोरी काम कैसे करती है ?
जर्मन researcher हरमन एबिंगहॉस ( Hermann Ebbinghaus ) ने ख़ुद पर एक्सपेरिमेंट कर के इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की . उन्होंने 2,300 तीन अल्फाबेट वाले बेतुके शब्द बनाए जैसे ZUG , REN , TAZ और उन्हें याद करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी . इस एक्सपेरिमेंट के माध्यम से एबिंगहॉस को एहसास हुआ कि मेमोरी की अलग – अलग लाइफ span होती है . कुछ यादें बस कुछ पलों के लिए याद रहती हैं जबकि कुछ जिंदगी भर के लिए याद रह जाती हैं .
एबिंगहॉस ने बताया कि एक मेमोरी को लंबे समय तक याद रखने के लिए उन्हें बीच – बीच में शब्दों को दोहराना पड़ता था . जितनी बार आप रिपीट करेंगे वो एमोरी उतने लंबे समय तक बनी रहेगी . एबिंगहॉस के काम के कारण इस सब्जेक्ट पर और भी स्टडी की गई . आप इस प्रिंसिप्ल को पढ़ाई करने में अप्लाई कर सकते हैं . अगर आपको बहुत कुछ याद करने की ज़रुरत है तो आप बिलकुल ऐसा कर सकते हैं अगर आप उसे हर रोज रिपीट कर सकते हैं तो लेकिन अगर आप एग्जाम के ठीक पहले कम समय में बहुत सारी इनफार्मेशन याद करने की कोशिश करेंगे तो आप इसमें फेल हो जाएँगे . एबिंगहॉस कहते हैं कि थोड़ी इनफार्मेशन को गैप देकर याद करना , सब कुछ एक साथ याद करने से बेहतर होता है यानी एक ही बार में सब कुछ याद करने की कोशिश करने से ज़्यादा असरदार ब्रेक लेकर छोटे – छोटे portion याद करना होता है .
आपका सोशल सिक्यूरिटी नंबर क्या है ? क्या आप बाइक चलाना जानते हैं ? जब आप अपने सोशल सिक्यूरिटी नंबर को याद करने की कोशिश करते हैं , तो आपने पिछली बार जब अपने कार्ड को देखा था या आखरी बार जब अपना नंबर लिखा था तो आप उस इमेज को देखने की कोशिश करते हैं . लेकिन जब आप कई सालों बाद दोबारा अपनी बाइक चलाते हैं , तब आप ऐसा नहीं करते . आप हर स्टेप याद नहीं करते जैसे हैंडल को पकड़ना , सीट पर बैठना और पेडल पर पैर रखना . आपको ये सब करने में ज़्यादा सोचना या याद करना नहीं पड़ता .
हम अवेयरनेस के होने या ना होने के बेसिस पर दो तरह की मेमोरी के बारे में बात कर रहे हैं . Declarative मेमोरी वो होती हैं जिनके बारे में आप बता सकते हैं जैसे ” मैंने ब्लैक शर्ट पहनी है ” या ” हम प्लेनेट earth पर रहते हैं ” . इस तरह की मेमोरी को अवेयरनेस की ज़रुरत होती है .
दूसरी ओर , Non – declarative मेमोरी वो हैं जो आप अपने आप यानी automatically करते हैं जैसे जूते की रस्सी बाँधना , अपने दांत ब्रश करना या बाइक चलाना . ऐसा इसलिए है क्योंकि मोटर स्किल्स हमारे conscious अवेयरनेस का हिस्सा नहीं होता है . हर सुबह आप बिना किसी एक्स्ट्रा एफर्ट के अपनी रूटीन का सारा काम करते हैं . आपको दांत ब्रश करने के लिए या जूते बाँधने के लिए कुछ याद नहीं करना पड़ता . यहाँ तक कि अगर आपने कई सालों से बाइक नहीं चलाई है या गिटार नहीं बजाया है तब भी आपके मसल्स को याद होगा कि उस काम को कैसे करना है . H.M नौ साल के थे|
जब वो साईकल से गिर गए थे . उनके सिर पर गहरी चोट लगी थी जिसके बाद उन्हें बीच – बीच में दौरे पड़ने लगे . उम्र बढ़ने के साथ उनकी हालत ख़राब होती जा रही थी . फ़िर एक समय ऐसा भी आया जब हफ़्ते में एक बार H.M. बेहोश होकर गिरने लगे . 30 की उम्र तक पहुँचते पहुँचते वो कोई भी काम करने में सक्षम नहीं रहे . यहाँ तक कि वो अपने घर में भी सेफ़ नहीं थे।
उनकी इस हालत को देखकर उनका परिवार उन्हें एक नामी – गिरामी न्यूरोसर्जन विलियम स्कोविल के पास ले गए . स्कोविल ने बताया कि H.M के ब्रेन में temporal lobe में प्रॉब्लम थी . ये हमारे दोनों कान के ऊपर ब्रेन का हिस्सा होता है . स्कोविल ने उसके ब्रेन के left और right temporal lobe को निकाला . इससे H.M. के दौरे तो कम हो गए लेकिन उसने शोर्ट टर्म मेमोरी को लॉन्ग टर्म मेमोरी में बदलने की एबिलिटी खो दी थी .
सर्जरी के बाद , H.M लंबे समय तक कुछ भी याद नहीं रख पाते थे . समय गुज़रने के साथ एक वक़्त ऐसा थी आया जब H.M. आईने में ख़ुद को पहचान भी नहीं पाए . उनका चेहरा बूढ़ा हो गया था . ये सर्जरी के पहले जैसा बिलकुल नहीं था . H.M. को पता नहीं था कि उनकी उम्र कितनी थी . वो कोई भी नया नाम , चेहरा , गाना या शब्द याद नहीं रख पाते थे . उनकी मेमोरी इतनी कम हो गई थी कि किसी से मिलने के बाद अगर वो मुड़ जाते थे तब भी वो उस शख्स को भूल जाते . H.M. सालों तक रिसर्च का सब्जेक्ट बने रहे . वो सभी साइंटिस्ट के साथ हंसमुख और मिलनसार तरीके से पेश आते . वो कभी किसी टेस्ट के कारण थके नहीं क्योंकि उनके लिए हर एक्सपीरियंस नया था . 82 की उम्र में सांस की प्रोबल्म की वजह से H.M. की मृत्यु हुई।
जैसा कि नाम से पता चलता है , शोर्ट टर्म की मेमोरी इतनी भी शोर्ट टर्म के लिए नहीं होती है . साइंटिस्ट एलन बैड्ले ( Alan Baddeley ) के अनुसार इसमें तीन फैक्टर का एक काम्प्लेक्स प्रोसेस है . पहला है auditory , दूसरा है visual और तीसरा है executive . शोर्ट टर्म मेमोरी के लिए ज़्यादा सटीक शब्द वर्किंग मेमोरी है . Auditory फैक्टर हमारे द्वारा सुने गए शब्दों के लिए दिया गया है . Visual फैक्टर उस इमेज के लिए ज़िम्मेदार है जो हम देखते हैं और हमारे ब्रेन में उसकी पिक्चर बनाते हैं . सेंट्रल executive शोर्ट टर्म मेमोरी में सभी चीज़ों का ट्रैक बनाए रखता है .
आइए एक कहानी से इसे समझते हैं . मिगेल नज़डोर्फ़ ( Miguel Najdorf ) जाने माने चेस प्लेयर थे . जब वो एक कम्पटीशन के लिए अर्जेंटीना में थे तो जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया था . मिगेल के परिवार को बंदी बनाकर कंसंट्रेशन कैंप में ले जाया गया।
इस उम्मीद के साथ कि वो दोबारा अपने परिवार से मिल पाएँगे , मिगेल ने 11 घंटे में चेस के 45 गेम खेले . उन्होंने इसे एक पब्लिसिटी स्टंट के रूप में इस्तेमाल किया था ताकि उनके परिवार का कोई मेंबर उनके बारे में सुनकर उनका पता लगा सके . 11 घंटों तक बिना रुके चेस खेलना अपने आप में हैरान करने वाला था लेकिन इसमें एक और दिलचस्प बात थी,जो ये थी कि मिगेल आँखों पर पट्टी बांधकर ये सभी गेम खेल रहे थे . इस बात पर ध्यान दें कि गेम की शुरुआत में चेस के बोर्ड पर हर पीस के लिए एक जगह फिक्स होती है . मिगेल ने सबसे पहले ऑडियो फैक्टर का इस्तेमाल करते हुए गेम खेला .
जब सामने वाला प्लेयर अपनी चाल चल देता तो मिगेल उससे पूछते कि उसने कौन सा पीस बढ़ाया है और उसके हिसाब से अपनी चाल चलते . उसके बाद उन्होंने visual फैक्टर का इस्तेमाल कर अपने ब्रेन में इमेज बनाई कि चेस बोर्ड पर हर पीस कैसे चलता है . इसलिए वो आँखें बंद रखते हुए भी गेम आसानी से जीत सकते थे . अंत में , मिगेल ने सेंट्रल executive फैक्टर का इस्तेमाल एक गेम को दूसरे से अलग करने के लिए किया मतलब जब एक गेम ख़त्म हो जाता तो वो अपनी मेंटल इमेज को दोबारा गेम के शुरूआती सेटिंग पर सेट कर लेते।
जैसा कि एबिंगहॉस ने कहा , अगर आप बीच – बीच में अपनी इनफार्मेशन को रिपीट नहीं करेंगे और उसे दूसरे ज़रूरी इनफार्मेशन के साथ कनेक्ट नहीं करेंगे तो आप जल्द ही उसके बारे में भूल जाएंगे . इस प्रोसेस को कंसोलिडेशन ( consolidation ) कहा जाता है . इस तरह हम अपनी शोर्ट टर्म मेमोरी को लॉन्ग टर्म मेमोरी में बदलते हैं . आसान शब्दों में , कंसोलिडेशन का मतलब है रिपीट करना और जोड़ना . अगर आप सच में कुछ याद रखना चाहते हैं तो आपको उसे बार – बार रिपीट करना होगा।
इसका मंत्र है : रिपीट करें और कनेक्ट करें . आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आपकी बचपन की यादें उतनी भी सटीक नहीं हैं जितना आप सोचते हैं . जैसे – जैसे समय बीतता है , आपकी मेमोरी में किसी भी घटना की डिटेल मिटने लगती है और इसलिए ब्रेन नई बातें उस घटना में जोड़ने लगता है . आपका ब्रेन दुनिया में आपके द्वारा एक्सपीरियंस की गई हर इनफार्मेशन को अपने अंदर ले लेता है . इसलिए ये आपकी पुरानी यादों को नई यादों के साथ जोड़ने की technique का इस्तेमाल करता है .
इससे ब्रेन को हर चीज़ का मतलब समझने में आसानी होती है . जैसे मान लीजिये कि 8 साल की उम्र में आपने बीच पर अपने पेरेंट्स साथ बहुत ही अच्छा समय बिताया . 10 साल की उम्र तक आप उस दिन की डिटेल को बिलकुल सटीक तरह से याद रख पाएंगे . हो सकता है कि आपने अपनी डायरी में उस दिन के बारे में लिखा भी हो . लेकिन अगर आप तीस साल बाद उस डायरी को पढ़ेंगे , तो उस दिन की मेमोरी वैसी नहीं होगी जो डायरी लिखते वक़्त थी . ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके नए एक्सपीरियंस उस खुशनुमा मेमोरी पर अपना असर डालते हैं जिस वजह से उसकी डिटेल मिटने लगती है . जिन बातों को हम बार – बार याद नहीं करते वो बातें ब्रेन अपने आप डिलीट करने लगता है।
अक्सर नींद की कमी की वजह से आप जो बदलाव महसूस करते हैं , उस वजह से आप ओवर रियेक्ट करने लगते हैं और आप इसमें गलत नहीं हैं . स्टडी ने बार – बार इस बात को साबित किया है कि नींद की कमी आपकी बॉडी को गंभीर नुक्सान पहुंचाती है . हम बिना रुके या बिना नींद लिए लगातार काम नहीं कर सकते क्योंकि हमारी बॉडी में जागने और सोने का एक automatic सिस्टम बना हुआ है . जागना और सोना हमारे बॉडी के अंदर चल रही एक लड़ाई के रूप में बताया गया है .
ये लड़ाई प्रोसेस C और प्रोसेस S के बीच में है . प्रोसेस C उन होर्मोंस और केमिकल से बना हुआ है जो आपको जगाए रखने का काम करते हैं . दूसरी ओर , प्रोसेस S उन होर्मोंस और केमिकल से बना है जिनका काम है आपको सुलाना . इस लड़ाई में जो प्रोसेस ज़्यादा हावी होता है उसके हारने की possibility ज़्यादा होती है , लेकिन ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए है क्योंकि आप जितने लंबे समय तक जागते रहेंगे उतनी ही आपको ज़्यादा नींद आने लगेगी क्योंकि आपकी बॉडी बहुत थक चुकी होती है . यहाँ तक कि दोपहर में झपकी लेना भी रिसर्च करने वालों द्वारा healthy माना गया है . झपकी लेने का मतलब ये नहीं है कि आप आलसी हैं या ज़्यादा सो रहे हैं .
हमारी बॉडी को बस कुछ देर आराम करने का मौका चाहिए फ़िर चाहे वो कुछ ही मिनटों का क्यों ना हो . NASA द्वारा किए गए एक स्टडी से पता चला है कि 26 मिनट की झपकी लेने के बाद एक पायलट की परफॉरमेंस 34 % बढ़ गई थी . एक और स्टडी से पता चला कि 45 मिनट की झपकी लेने वाले स्टूडेंट्स की मेंटल प्रोसेसिंग काफ़ी बढ़ गई थी . आइए एक कहानी से इसे समझते हैं . 1965 में , 17 साल के रैंडी गार्नर ने फैसला किया कि वो अपने साइंस प्रोजेक्ट के लिए 11 दिनों तक लगातार जागता रहेगा . उसने इस अद्भुत काम को सिर्फ सच में करके ही नहीं दिखाया बल्कि उसने उस साल सबसे लंबे समय तक नींद ना लेने वाले इंसान के रूप में एक रिकॉर्ड भी बनाया।
लेकिन इसके बाद , अपने एक्सपेरिमेंट के दौरान रैंडी बहुत थका हुआ , चिडचिडा और भुलक्कड़ जैसा बर्ताव करने लगा . उसमें अल्जाइमर बीमारी के लक्षण जैसे भ्रम , पागलपन और मेंटल confusion भी दिखाई देने लगे . रैंडी की बॉ
डी एक ख़राब हुई मशीन की तरह काम कर रही थी . अपने एक्सपेरिमेंट के आखरी दिन , उसकी उंगलियाँ कांपने लगी और वो ठीक से बोल नहीं पा रहा था . पूरी नींद लेना सिर्फ़ बच्चों के लिए ज़रूरी नहीं होता .
ये हमारी बॉडी का एक नेचुरल प्रोसेस है ख़ुद को रिचार्ज करने का . पूरी नींद लेना हर उम्र के इंसान के लिए बहुत ज़रूरी है . जब आपको एग्ज़ाम के लिए पढ़ने की या किसी इम्पोर्टेन्ट प्रोजेक्ट पर काम करने की ज़रुरत होती है , तो आपको बीच – बीच में रेस्ट जरूर लेना चाहिए . झपकी लेने का मतलब आलसी होना नहीं होता बल्कि ये आपको ज़्यादा प्रोडक्टिव बनाता है .
तो आपने इस बुक में ब्रेन के 6 रूल्स के बारे में सीखा जो आपकी जिंदगी बदल सकते हैं .
ब्रेन रूल # 1 कहता है कि एक्सरसाइज ना सिर्फ़ फिजिकल बल्कि मेंटली फ़िट रखने में भी आपकी मदद करता है . ये आपको बेहद सुंदर तरीके से बढ़ती उम्र की ओर लेकर जाता है .
ब्रेन रूल # 2 ने आपको ये बताया कि समय के साथ आपका ब्रेन भी डेवलप होता रहा है . उसमें कई बदलाव आए हैं . इसने बदलते हुए वातावरण के अनुसार खुद को ढालते हुए आपको जिंदा रखने में मदद की है .
ब्रेन रूल # 3 ने आपके अटेंशन में मेमोरी , इंटरेस्ट और awarenes के प्रभाव के बारे में बताया . हम इस बात पर ज़्यादा ध्यान देते हैं कि हमारे कल्चर के लिए क्या इम्पोर्टेन्ट है , जो चीज़ एक्स्ट्राऑर्डिनरी है और हमारी समझ द्वारा समझा जाता है
ब्रेन रूल # 4 ने आपको ये समझाया कि एक साथ बहुत सारी इनफार्मेशन को याद करने के बजाय थोड़ा – थोड़ा याद करना ज़्यादा असरदार होता है . आपको बीच में ब्रेक लेने की और उस इनफार्मेशन को रिपीट करने की ज़रुरत है ताकि आप उसे याद रख सकें .
ब्रेन रूल # 5 ने आपको कंसोलिडेशन के बारे में सिखाया . रिपीट करना और कनेक्ट करना शोर्ट टर्म मेमोरी को लॉन्ग टर्म मेमोरी में बदल देता है .
ब्रेन रूल # 6 ने आपको याद दिलाया कि नींद लेना कितना ज़रूरी होता है . ये आपको पहले से ज़्यादा स्मार्ट और healthy बनने में मदद करता है . हमारा ब्रेन एक मसल ( muscle ) की तरह है . इसे एक्सरसाइज की ज़रुरत तो है लेकिन साथ में रेस्ट की भी ज़रुरत है . तो उम्मीद करते हैं ये रूल्स आपके माइंड की कैपेसिटी को बढ़ाने में आपकी मदद करेंगे .
हमारा ब्रेन इनफार्मेशन को प्रोसेस करने वाला एक बेहतरीन सिस्टम है और देखा जाए तो ये अब तक का सबसे बेमिसाल और complex मशीन है जो कमाल भी करता है और कभी – कभी हमें हैरान भी कर देता है . तो इसका अच्छे से ध्यान रखें और इसके अनलिमिटेड पोटेंशियल को अनलॉक करने की कोशिश करें क्योंकि हमें यकीन है कि इसकी पॉवर आपको चकित कर देगी।
दोस्तो आपको ये बुक संमरी कैसी लगी हमे जरूर बताएं। और अपने मित्रों के साथ शेयर करें।
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